अपनी गलती, अपना नुकसान – बीमा कंपनी पर नहीं डाल सकते बोझ: सुप्रीम कोर्ट

मृतक की गलती से हुई दुर्घटना में इंश्योरेंस कंपनी जवाबदेह नहीं – सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव वाला फैसला सुनाया है, जो लाखों वाहन चालकों और बीमा पॉलिसीधारकों के लिए चेतावनी स्वरूप है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि वाहन चालक खुद की लापरवाही से दुर्घटना का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसके परिजनों को बीमा कंपनी से मुआवजा नहीं मिलेगा।

सुनवाई जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और आर. महादेवन की खंडपीठ ने की। याचिकाकर्ता एन.एस. रविशा की पत्नी और परिजनों ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से ₹80 लाख मुआवजे की मांग की थी।

रविशा 18 जून 2014 को फिएट लीनिया कार चला रहे थे, जिसमें उनके परिवार के सदस्य सवार थे। तेज रफ्तार और ट्रैफिक नियमों की अनदेखी के कारण कार अनियंत्रित होकर पलट गई, जिसमें रविशा की मृत्यु हो गई।

जांच और पहले के फैसले

  • पुलिस चार्जशीट में रविशा को दुर्घटना का ज़िम्मेदार ठहराया गया।
  • मोटर दुर्घटना ट्रिब्यूनल (MACT) और कर्नाटक हाई कोर्ट ने पहले ही बीमा दावे को खारिज कर दिया था।
  • याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि दुर्घटना टायर फटने से हुई, लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया।
  • सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा:- यदि मृतक खुद ही दुर्घटना के लिए जिम्मेदार है, तो उसके कानूनी उत्तराधिकारी मुआवजे की मांग नहीं कर सकते। इंश्योरेंस का उद्देश्य दूसरों को सुरक्षा देना है, न कि आत्मघाती लापरवाही को कवर करना।

क्या बदलेगा अब?

यह फैसला बीमा मामलों की व्याख्या और याचिकाओं के दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव ला सकता है। अब बीमा दावा करते वक्त याचिकाकर्ताओं को साबित करना होगा कि—

  • मृतक लापरवाह नहीं था
  • दुर्घटना पॉलिसी नियमों के तहत हुई
  • बीमा कवरेज की शर्तों का पालन हुआ है

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह साफ हो गया है कि बीमा कंपनियां हर मौत पर मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं हैं, खासकर जब दुर्घटना मृतक की लापरवाही, तेज रफ्तार या नियमों की अवहेलना के कारण हो। यह फैसला सड़क सुरक्षा को लेकर सख्त चेतावनी और कानूनी मिसाल है।

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