नई दिल्ली | 3 जुलाई 2025
लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के मामलों को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की नीतियाँ किसानों को बर्बादी की ओर धकेल रही हैं, और सत्ता में बैठे लोग चुपचाप यह त्रासदी देख रहे हैं।
राहुल गांधी ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा:
“सोचिए… सिर्फ़ 3 महीनों में महाराष्ट्र में 767 किसानों ने आत्महत्या कर ली। क्या ये सिर्फ एक आंकड़ा है? नहीं। ये 767 उजड़े हुए घर हैं, 767 परिवार जो कभी नहीं संभल पाएंगे। और सरकार? चुप है, बेरुखी से देख रही है।”
उन्होंने सरकार से सवाल किया कि जब बीज, खाद और डीज़ल जैसे ज़रूरी संसाधन लगातार महंगे होते जा रहे हैं, और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की कोई गारंटी नहीं दी जा रही है, तो किसान कैसे जिएं?
“किसान हर दिन कर्ज में और गहराई तक डूब रहा है… लेकिन जब वो कर्ज माफ़ी की मांग करते हैं, तो उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।”
राहुल गांधी ने इस पूरे सिस्टम को ही कटघरे में खड़ा करते हुए कहा:
“ये सिस्टम किसानों को मार रहा है — चुपचाप, लेकिन लगातार। मोदी जी अपने PR तमाशे में व्यस्त हैं, जबकि किसानों की ज़िंदगियाँ खत्म हो रही हैं।”
उन्होंने अमीर उद्योगपतियों पर सरकार की मेहरबानी को भी आड़े हाथों लिया।
“जिनके पास करोड़ों हैं, उनके लोन मोदी सरकार आसानी से माफ कर देती है। आज ही की खबर देखिए — अनिल अंबानी पर ₹48,000 करोड़ का SBI फ्रॉड, और सरकार चुप है।”
राज्य में किसानों की दोहरी मार – आत्महत्या और भुगतान संकट
महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या के साथ-साथ सोयाबीन खरीद में भुगतान न होने का मुद्दा भी ज़ोर पकड़ता जा रहा है। किसानों का आरोप है कि फसल खरीदी के बाद महीनों से भुगतान नहीं हुआ, जिससे वे कर्ज और मानसिक तनाव के बोझ तले दबे हैं। अब विपक्ष ने भी इस मामले को विधानसभा और सड़कों दोनों पर जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया है।
विपक्ष ने उठाई मांग: किसानों को राहत दे सरकार
राहुल गांधी और कांग्रेस की मांग है कि केंद्र सरकार:
- किसानों को कर्ज से राहत देने के लिए तत्काल कर्ज माफी योजना शुरू करे
- एमएसपी की कानूनी गारंटी दे
- और खाद-बीज-डीज़ल जैसी मूलभूत कृषि ज़रूरतों को सस्ता करे।
अंत में एक सवाल – क्या अन्नदाता की आवाज़ सुनी जाएगी?
राहुल गांधी की यह पोस्ट किसानों की स्थिति पर देशभर में बहस को फिर से तेज़ कर सकती है। अब देखने वाली बात यह होगी कि केंद्र सरकार इस गंभीर आरोप पर क्या प्रतिक्रिया देती है—और क्या सच में “अन्नदाता” की ज़िंदगी को प्राथमिकता दी जाएगी, या फिर आंकड़ों के नीचे किसान की पीड़ा दबा दी जाएगी?